Wednesday, April 4, 2012

मन का क्या करू?

रुके न जो, झुके न वो,
बहे है जो, थके न वो 
उड़ा फिरे, बहे बहे,
मन का क्या करू?

कभी ये करे, कभी वो पसंद,
कभी उड़ता फिरे, कभी बंद बंद
कुलाचे भरता अश्व से भी तीव्र है
मन का क्या करू?

हठी बड़ा, जड़ा खड़ा,
आनंद खोजे बावला
करता क्यों ये आत्मा से द्वन्द है
मन का क्या करू?

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