Wednesday, April 4, 2012

खोज





गोते लगाता फिरू, ठोकरे खाता फिरू !
कहू क्या किसी से मैं, जब खुद ही से नज़र चुराता फिरू !!
अपने को पाने में ही, हर कदम पर हूँ भटकता !
अपनी ही शिकायते, ए खुदा, मैं किससे करू !!

मन का क्या करू?

रुके न जो, झुके न वो,
बहे है जो, थके न वो 
उड़ा फिरे, बहे बहे,
मन का क्या करू?

कभी ये करे, कभी वो पसंद,
कभी उड़ता फिरे, कभी बंद बंद
कुलाचे भरता अश्व से भी तीव्र है
मन का क्या करू?

हठी बड़ा, जड़ा खड़ा,
आनंद खोजे बावला
करता क्यों ये आत्मा से द्वन्द है
मन का क्या करू?